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पंखीड़ो क्यारे उड़ी जाशे,
करेलू भेगो, छूटी जशे पल मा।
मुसाफ़री गनी करी थाकि गयो आत्मा, स्व ने भूली मजा माणी, वसवू छे जातमा, पलटाई जशे रंगों बधा,
छुटी जैसे संगो बधा पलमा,
पंखीड़ो क्यारे उड़ी जाशे,
करेलू भेगो, छूटी जशे पल मा।
एक दिन चाली जवानु रे,
ना कुण आवे हारे,
साथे लाकड़ा छे,
खाली आवेला झोला, खालीज जवाना छे याद रहे,
अंजल जोड़ी सहु पाछा वड़े,
कोई साथे आवे ना,
कोण माता कोण पिता
कोई साथे आवे ना,
पंखीड़ो क्यारे उड़ी जाशे,
करेलू भेगो, छूटी जशे पल मा।
कदी तड़काने, कदी छायड़ा,
कदी आपत्ति ने सजा,
कदी साज होए, तो कदी सवार,
कभी सम्पत्ति ने मजा।
कर्मोंतणी छे आ बधी लीला, तू मुंजावे शा,
मंज़िल तारी खुदमा तू पामे, भटकी रहयो छे शा?
तू भटकी रहयो छे शा?
मुसाफ़री गणी करी, शरणे आवी छू नाथ,
स्व ने भूली मजा माणी, स्वीकारी लेजे ने नाथ,
कठिन लागे छे मारी डगर,
पार करू हु किम ए तारे बगर हे नाथ
पंखीड़ो क्यारे उड़ी जाशे,
करेलू भेगो, छूटी जशे पल मा।
थाकी गयो छु गनु भमी ने रे,
हाथे भरेलू पाणी, निसरतू जाय रे,
साचो मार्ग मुजने,
मारा नाथ नु जणाये रे,
आ मुसाफ़ारी नो अंत अही छे।
स्व ने पामवानी राह मली छे,
आ मुसाफ़ारी नो अंत अही छे।
स्व ने पामवानी राह मली छे…..

